प्रसन्नता का रहस्य

प्रसन्नता कोई वस्तु नहीं है। प्रसन्नता मनुष्य के सौभाग्य का चिह्न है। प्रसन्नता बाजार में नहीं मिलती है |  परमपिता परमेश्वर उन्ही व्यक्तियों पर अपनी कृपादृस्ति बनके रखता है जो सदा प्रसन्नचित्त रहते है। 

सभी मनुष्य अपने स्वयं के दोष की वजह से दुखी होते हैं, और वे खुद अपनी गलती सुधार कर प्रसन्न हो सकते हैं|

यदि हमें प्रसन्न रहना है तो हमें अपनी आवश्यकताओं को कम करना होगा और परिस्थितियों के अनुसार अनुकूल होना होगा। हमें समय के साथ चलना होगा। समय न किसी के लिए रुका है, न रुकेगा। 


समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। इसी प्रकार परिस्थितियाँ हमारे अनुकूल नहीं हो सकतीं हमें ही परिस्थितियों के अनुसार ढलना होगा। यह प्रकृति का नियम है और हम प्रकृति के नियमों का उल्लंघन कैसे कर सकते हैं।

जीवन में कुछ न होने पर भी यदि किसी का मन आनंदित है तो वह सबसे संपन्न मनुष्य है। आंतरिक प्रसन्नता के लिए किन्हीं बाहरी साधनों की आवश्यकता नहीं होती। 

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