श्लोक
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। बलवानप्यशक्तोऽसौ धनवानपि निर्धनः |श्रुतवानपि मूर्खोऽसौ यो धर्मविमुखो जनः || जो व्यक्ति धर्म ( कर्तव्य ) से विमुख होता है वह ( व्यक्ति ) बलवान् … Read more